जख्म जब अश्को को पी लेता है ,
जिंदगी को तमाम जी लेता है ।
वक़्त हो जाता है बदनाम खुद ही ,
बिजलिया जब कलियों पे गिरा देता है ।
तनहा तन्हाईयो में एक आस फूटी जाती है ,
जब दरख्तों पे कोई नाम मेरा लिखता है ।
उनसे न कीजियेगा तुम इर्ष्या ,
कभी साकी जहर भी पी जाता है ।
सुबह होने को पल में गिनता हूँ ,
नींद में कोई आवाज़ दे के जाता है ।
दिल से मिलता नहीं किसी से मैं ,
इक लुटे घर में ऐसे क्यों कोई आ जाता है ।
नीलाम कोई क्या होगा किसी के लिए ,
ये “राही” तो हर मंजिल पे बिका जाता है ।
H.P.RAHI