शाम , पलकों में डूबी एक किताब सी लगती है ,
पत्तो पे जिसके ढलकी , शायद कुछ शराब सी लगती है |
शाम , घायल अश्को से भी घायल लगती है ,
गहराई से देखा तो यह एक हिसाब सी लगती है |
शाम , पागल दिल सी पागल , किसी बोजिल शबाब सी लगती है ,
बुझते हुए चिराग से भड़की जलती छाव सी लगती है |
H.P.RAHI
nice thought
superb brother
aise hi likhte raho ek din professional writer ban jaoge