तुम तो मेरे थे हमेशा , क्या गज़ब तुमने किया
लोगो की बातों में आना , तुमने कब से सिख लिया
एक करम की थी गुज़ारिश , एक रहम की थी उम्मीद
आ के तेरे शहर में , क्या गलत हमने किया
कितने मयखाने जले और कितनी सदियों के जगे
क्या रखे इनका हिसाब , जो दिया तुमने दिया
शाम के पतजड़ बीने थे मौसमो की याद में
रात की बारिश ने सब तिनको को फिर तूफां किया ।
H.P.RAHI
वीरेन भैया……. बहुत ही बेहतरीन
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