शाम मुझपे एहसान करती है ,
रोज़ मिलती है जुदा होती है |
यु सताती है मुझे हर साँस मेरी ,
नाम लेती है और बदनाम होती है |
क्या वफ़ा , क्या उम्मीद और क्या ज़ज्बात ,
इससे बेहतर भी कोई सजा होती है ?
यु दिखती नहीं उजालो में नजारों की तरह ,
यह शमा , दिल के आइनों में अक्स होती है |
H.P.RAHI
Kya khub likha hai mza aa gya 🙂