दिलजले दिल यु खुदाओं की खुदाई रोए
जलते हुए खत ज्यो असीरी की रिहाई रोए
दर्द-ए-चारागिरी तो वस्ल-ए-मयख़ाने में थी
और हम बस एक मुलाक़ात की दुहाई रोए
तजरूबा खूब रहा उल्फत-ए-मुसीबत का
लोग क्यों खाम्ख्वा यार-ए-जुदाई रोये
जाने कितने हिसाब होने को थे लेकिन
जिंदगी बस वक़्त को ही गवाही रोये |
असीरी – कैद , चारागिरी – इलाज़ , वस्ल – मिलन
H.P.RAHI