अरसा बिता है किसी की याद सताए हुए ,
अब भी रखता काश मैं तूफान जगाये हुए |
उसकी सोहबत में नज़ारे हसीन लगते थे ,
उसके पहलु में मुझे चाँद सितारे करीब लगते थे
अब तो जैसे सन्नाटो के शोर गूंजते रहते है
मुझको भी तो युग बीते आवाज़ लगाये हुए
अजीब दौर था , मुहोब्बत की बात करते थे,
आग के दरिया में किनारों की बात करते थे,
न जाने तिश्नगी कैसे बुझा लेती है खुद ही प्यास
जलता रहता हूँ हर रोज़ एक शाम बुझाये हुए |
तिश्नगी – प्यास |
H.P.RAHI
waaaaa ….. waaaaaaa ……. waaaaaa
wa ustad wa